एक शेर हो ....जंगळ गो राजा । पण बिंगी एक प्रोब्लम ही ......प्रोब्लम आ कै , शेर राजा नै नींद भोत आंवती ।
अब शेर राजा तो नींद में अलीतर हुएड़ो पड़यो रैंहवतो और हिरणीया , रोझडा, लूंकड़ा आराम स्युं चरगे भाज ज्यांता । शेर राजा नै भोत बार भूखो सोणो पड़तो ।
एकर शेरराजा नै जंगळ में रजनीगन्धा गो पुड़ीयो लाध्यो । शेर बीं पुड़ियै नै खा लियो । जियां ही रजनीगन्धा पेट में गयो ....शेरराजा गै दिमाग गी बती चसगी और दिमाग में आयडिया ही आयडिया आण लाग ग्या ।
शेर एक जोहड़ै गै सारै बैठग्यो । एक गादड़ गा दिनमान माड़ा ....तो बो पाणी पीवण नै आयो । शेर झपटी मार गे गादड़ नै पकड़ लियो .....गादड़ दोन्यु हाथ जोड़ लिया -
- हो महाराज ....मन्नै छोड़ देवो , म्हारी गादड़ी भूख मरजी ।
जणा शेर बोल्यो - " अरै मोट्यार ....डर मत , मैं तो तन्नै नौकरी देस्युं ....मन्नेजर गी नौकरी "
जणा गादड़ बोल्यो -
" महाराज ....पण मैं तो पंजा छाप हूँ ...इस्कूल तो गयेड़ो ही कोनी ...मैं मन्नेजर गी पोस्ट गै लायक कोनी "
शेर बोल्यो - " रै बावळा पढ़ी लिखी तो बीनणी भी काम गी कोनी ....तो मन्नेजर के काम गो ? मन्नै अणपढ़ मन्नेजर ही चाहिजै .....तेरो काम खाली इतो है कै , मन्नै नींद भोत आवै ....तो जियां ही कोई शिकार आवै ...तूँ मन्नै जगाण देई । बस "
शेरराजा तो सो ग्यो और गादड़ पलाथी मार गे बैठग्यो । थोड़सी देर बाद एक हिरणियो पाणी पीवण नै आयो ।
गादड़ शेर नै जगाण्यो -
- महाराज ...शिकार आग्यो ।
शेर एक अंगाड़ी तोड़ी और गादड़ नै बोल्यो -
" मेरी आँख देख ....लाल हुगी गे ?"
- हां महाराज ....एकदम लाल भभक
" मेरी पूंछ देख ....च्यार बंट पड़ग्या गे ?
- बिलकुल महाराज ...
शेर फर्लांग मारी और हिरणियै नै.... मारगे चोखो चोखो मांस खुद खा लियो और बंचेड़ो मांस गादड़ नै दे दियो -
" लै तेरी सैलेरी "
फेर शेर रजनीगन्धा खा गे सोग्यो । गादड़ सोच्यो - बेटो आ के चीज है ?
तो गादड़ शेर गी जेब स्युं रजनीगन्धा काढगे च्यार दाणा चिबळ लिया ।
जियां ही रजनीगन्धा पेट में गयो ....गादड़ गै दिमाग में आयडिया ही आयडिया ।
गादड़ सोच्यो - " यार ....क्यों इं नौकरी में काया गो कजियो करूँ ? शेर गी तरियां खुद गो बिजनस करणों चाहिजै "
और गादड़ चाल पड़यो । आगे एक लूंकड़ मिल्यो .....गादड़ बीं लूंकड़ नै बोल्यो -
" अरै लूंकड़....क्यों डो डो करतो उन्दरा गै लार भाजै ? मेरै नौकरी कर लै ....मन्नेजर गी नौकरी "
- काम के करणों है ?
" काम कुछ ही कोनी ....मन्नै नींद भोत आवै , तो जद भी कोई शिकार आवै ....तूं खाली मन्नै जगाण देई "
अबै गादड़ तो सो ग्यो और लूंकड़ पलाथी मारगे बैठग्यो ।
थोड़सी देर में एक गधियो चरतो- चरतो आयो । लूंकड़ गादड़ नै बोल्यो - "महाराज ....उठो , शिकार आयो है "
गादड़ तो जागतो ही हो । बण अंगाड़ी तोड़ी और लूंकड़ नै बोल्यो -
" देख ...मेरी आँख लाल हुगी गे ?"
- ना महाराज ...आँख तो फिटकड़ी बरगी धोळी पड़ी है ।
" देख ...मेरी पूंछ में बंट पड़ग्या गे ?"
- ना महाराज ...पूंछ तो लट्ठ बरगी सीधी पड़ी है ।
गादड़ एक फर्लाग मारगे गधियै गै मांही पड़यो । गधियै टेढो हुगे एक दुलात गादड़ गै मारी ।
गादड़ो दस हाथ दूर जा गे पड़यो ....टेक्टर स्युं छलेड़ो जरीकन पड़ै ज्यूँ ।
जीभ बारै आ पड़ी और पंजिया चाँद कानै ।
लूंकड़ भाज गे गादड़ कन्नै आयो और बोल्यो -
" महाराज ....आँख तो थारी अबै लाल हुई है ...एकदम रोळी बरगी और पूंछ भी दस बंट खा गी "
तो भायड़ो रजनीगन्धा उलटो असर भी करै । ध्यान स्युं खाईयो ।